मोहब्बत के बिना तो ज़िंदगी इक शाप है
मगर ये एक-तरफ़ा आशिक़ी इक शाप है
मोहब्बत जिन के हिस्से में नहीं आई उन्हें
कैलेंडर का महीना फ़रवरी इक शाप है
भले ही सीख लो सारा अरूज़-ए-रेख़्ता
किए बिन इश्क़ शेर-ओ-शाइरी इक शाप है
तुम्हें गर चाहिए मैं दिल जला दूँगा मिरा
मगर मेरे लिए तो रौशनी इक शाप है
नई दुनिया बना रब उस में देना अगला जन्म
ये सच है इस जहाँ में मुफ़्लिसी इक शाप है
मोहब्बत में मिली नाकामी तब तो ठीक है
बिना उल्फ़त के ग़म के मय-कशी इक शाप है
जो हो शादी-शुदा फिर भी कहीं और मारे मुँह
हर इक औरत को ऐसा आदमी इक शाप है
मिरे आँसू नहीं निकले ये बात और है मगर
बिछड़ कर तुझ से होंठों पर ख़ुशी इक शाप है
'मिलन' जो भाई को दुश्मन बना दे भाई का
मकाँ में औरत ऐसी एक भी इक शाप है
As you were reading Shayari by Milan Gautam
our suggestion based on Milan Gautam
As you were reading undefined Shayari