ज़ख़्मों पर सिर्फ़ उसका छूना शायद इतना काफ़ी है

  - Milan Gautam

ज़ख़्मों पर सिर्फ़ उसका छूना शायद इतना काफ़ी है
सहराओं में उसका साया शायद इतना काफ़ी है

असवद ज़ुल्फ़ें ग़ज़ाली आँखें लब गुलफ़ाम और शोख़ शबाब
मैं ने जो नज़्ज़ारा देखा शायद इतना काफ़ी है

उस को नक़ली गुड्डे देना मुझ को ज़ेब नहीं देता
मैं ने दिल दे दिया है अपना शायद इतना काफ़ी है

जल्दी-से-जल्दी कर के भी तुम शादी के जोड़े में
और मेरे सर पर इक सेहरा शायद इतना काफ़ी है

अच्छा-ख़ासा हूँ मैं आवारा हो जाऊँ प्यार में क्या
मेरे क़दम और उसका कूचा शायद इतना काफ़ी है

माथे पे बिंदी आँखों में काजल लाली होंठों पर
और उसके बालों में गजरा शायद इतना काफ़ी है

बेचैनी है बहुत 'मिलन' ये पहला मिलन हमारा है
होगा आज मुकम्मल सपना शायद इतना काफ़ी है

  - Milan Gautam

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