हद के आगे छूना भी ज़ख़्मों की दवा बन जाता है
इश्क़-ए-हक़ीक़ी होते ही महबूब ख़ुदा बन जाता है
दिल गुम होता ग़म होता वज्द-ओ-बे-सब्री बढ़ती है
प्यार मज़ा देता है लेकिन इश्क़ सज़ा बन जाता है
ज़्यादा वक़्त नहीं लगता है आदत लगने में किसी की
मिलते रहने से क़ुर्ब इक दिन एक नशा बन जाता है
इक चेहरा साया बन मेरी चारों जानिब रहता है
उस को हाथ लगाते ही फ़ौरन वो हवा बन जाता है
प्यार में लोग इतने पागल हो जाते हैं महबूब अगर
जाँ भी माँगे तो उन के लिए वो रब का कहा बन जाता है
दुनिया ज़ार-ए-क़बाहत है तू दुनिया से जुदा हो कर चल
दिल में गर अख़्लाक़ हों तो हर शाप दुआ बन जाता है
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