आँखों से मेरी इक दरिया छलका
तेरी रहमत जो ये सहरा छलका
साथ तेरे सुकूँ से रहे हम
फिर तिरे जाने का लम्हा छलका
रात गुज़री तिरी जिस भी साए
उसकी दहलीज़ से नग़्मा छलका
लम्स से तेरे चेहरे पे मेरे
हर दफ़ा इक नया चेहरा छलका
सर उठा जब फ़लक देखा तुमने
लुत्फ़ में आसमाँ कैसा छलका
ग़ुस्सा छलका तिरे होंटों से भी
मेरे होंटों से बस बोसा छलका
जाम लबरेज़ ख़ुशनूदी से था
जाने पे तेरे जो पूरा छलका
अब वफ़ा की दुहाई का क्या मोल
तेरी तासीर जब धोखा छलका
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