उनकी पलकों पे जाकर मर जाते हैं
हम उन नज़रों में आकर मर जाते हैं
वो नैन दिखाते हैं दर इक जन्नत का
हम उनसे आँखें मिलाकर मर जाते हैं
हैं रंग जहाँ भर के आँखों में उनकी
हम ख़ुद को उनसे सजाकर मर जाते हैं
वो आँसू जो आते हैं ग़म-ए-उल्फ़त के
अक्सर आँखों में आकर मर जाते हैं
इक अफ़सुर्दा सा दिल है हमको हासिल
हम थोड़ी ख़ुशियाँ पाकर मर जाते हैं
वो जब भी सुलाए साए में ज़ुल्फ़ों के
हम दुनिया सारी भुलाकर मर जाते हैं
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