होंठों से मेरे हर इक हँसी छीन ली
ज़िंदगी की मिरी हर ख़ुशी छीन ली
ज़िम्मेदारी का जब भार हम पे पड़ा
ज़िम्मेदारी ने ये ज़िंदगी छीन ली
जिस पे था सबसे ज़्यादा भरोसा हमें
उसने उम्मीद भी आख़िरी छीन ली
हम अगर चाहते लौट भी सकते थे
इस अना ने मगर वापसी छीन ली
दोस्त भी अब नहीं मानती वो मुझे
इस मुहब्बत ने इक दोस्ती छीन ली
शाइरी भी नहीं हो रही हम से अब
ग़ुस्से ने हम से ये नौकरी छीन ली
ज़िंदगी छोड़ना चाहता था मगर
माँ की तस्वीर ने ख़ुदकुशी छीन ली
जीने की अब वजह कोई भी तो नहीं
जितनी थी वो सभी की सभी छीन ली
रौशनी करने की आदतों ने 'अमन'
ज़िंदगी से मिरी रौशनी छीन ली
Read Full