डाँटती है बस मुझी को
सुन ज़रा इस ख़ामुशी को
बोलते हैं मुस्कुराओ
छीन कर मेरी हँसी को
देके आँसू पूछते हैं
क्या हुआ मेरी ख़ुशी को
तुमको आगे बढ़ना है गर
मत सुनो तुम फिर सभी को
चाहते हो सीखना गर
आज़माना ज़िंदगी को
इश्क़ तुमको हो गया गर
दोष मत दो दोस्ती को
खेलकर हैं तोड़ देते
दिल न देना हर किसी को
जान लेती है ये सबकी
तुम न करना आशिक़ी को
आँखों को तकलीफ़ दे जो
छोड़ ऐसी रौशनी को
ज़िंदगी से थक चुका हूँ
रास्ता दो ख़ुदकुशी को
बेटियों को घूरे जो गर
मारों ऐसे आदमी को
अब नहीं आएँगे मोहन
शस्त्र दो तुम द्रौपदी को
धार लानी होगी इसमें
चाहिए दुख शाइरी को
नाम करना है जहाँ में
छोड़ दूँ क्या नौकरी को
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