आया ख़याल देख के लहजे अलग अलग
रहना पड़ेगा अब से कि हाए अलग अलग
उससे जुदा हुये तो ये भी इल्म हो गया
इक जान दो बदन हुये कैसे अलग अलग
सारे दुखों को रो लिया इक रोज़ बैठकर
इतना कहाँ था वक़्त कि रोते अलग अलग
पहले ज़बाँ दी बाद ज़बाँ से पलट गया
किरदार एक शख़्स से निकले अलग अलग
जिसको मैं नें ये दिल दिया था एक बार में
लौटा रही है वो मुझे टुकड़े अलग अलग
मेरी पसंद और थी उसकी पसंद और
इस वास्ते थे लाज़िमी रस्ते अलग अलग
उनसे सवाल-ए-वस्ल भी करना फुज़ूल है
जो दोस्त भी हो और हो बैठे अलग अलग
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