पता है टूटना है दिल, किसी से फिर लगाना क्या
किसी के प्यार में पड़ के, जी को अपने सताना क्या
जब से तेरी धुन चढ़ी, बस तेरी आवाज़ सुनते हैं
तेरे आगे ग़ज़ल क्या, ये तराना क्या, फसाना क्या
दिलों के दरमियां नाराज़गी क्यों, बस मुहब्बत हो
नहीं है जब मुहब्बत तो रिझाना क्या, मनाना क्या
ज़रा समझो मुहब्बत को खरीदा जा नहीं सकता
ये ऐसी चीज़, इसके आगे दौलत क्या, खज़ाना क्या
शहर से गांव तक मैं, रोज़ आवारा बना फिरता हूं
मेरे जैसे फकीरों का ठिकाना क्या, घराना क्या
हवा ने इन चरागों को सताया खूब, आंधी बन के
जले टूटे चरागों को जलाना क्या, बुझाना क्या
तु एक मेरे सिवा एक और से भी प्यार करता है
पता चल ही गया, तो फिर दलीलें क्या, बहाना क्या
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