की मैंने सबसे दोस्ती अपने हिसाब से
जी मैंने अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से
हम सारी उम्र मस्जिद-ओ-मंदिर नहीं गए
की है ख़ुदा की बन्दगी अपने हिसाब से
हर बार मुस्कुरा के उसे माफ़ कर दिया
हम ने जताई दुश्मनी अपने हिसाब से
अख़बार से न कोई न ही इश्तिहार से
हमनें मिटाई तीरगी अपने हिसाब से
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