कोई किसी की बाँहों में पूरा आ रहा था
कोई किसी के हाथों से निकले जा रहा था
वो जो किसी नज़र पे जी-जाँ से जा लगे थे
उनके लिए में जाँ-बर काजल बना रहा था
मेरा वो नाम लेके वापस से आ रही थी
मुझको नज़र सराबों में सहरा आ रहा था
उसने बिना पढ़े ही ख़त मेरे थे सँभाले
वो बे-वफ़ा रहा था पर बा-वफ़ा रहा था
मैं चुप करा रहा था वो रोये जा रही थी
वो चुप करा रही थी , मैं रोये जा रहा था
जब दूर कोई बन्दा सर्दी से मर गया था
तब दूर कोई बन्दा चादर चढ़ा रहा था
उसकी यहाँ विदाई जब बरपा हो रही थी
तब कोई गाड़ियों में सोफ़े चढ़ा रहा था
As you were reading Shayari by Raj
our suggestion based on Raj
As you were reading undefined Shayari