चुप कराता है संसार का दुख
रोता हूँ जब मैं बेकार का दुख
छत को सर पे उठा रक्खा है पर
कौन पूछे है दीवार का दुख
बाद छह दिन के इतवार आना
ढोना छह दिन है इतवार का दुख
आइए बैठिए तब कहीं फिर
पूछिये आप बीमार का दुख
है असल में जुदाई का डर जो
लग रहा है तुम्हें प्यार का दुख
म्यान में आँसू देखे लगा तब
क़ैद है इसमें तलवार का दुख
फ़ायदे की जगह घाटा होना
है नहीं ये ही व्यापार का दुख
उभरा उभरा ये कागज़ बताए
उतरा है इक क़लमकार का दुख
इक तवायफ़ ने हँसकर के देखा
छिप गया फ़िर से बाजार का दुख
चाहता हूँ कि मैं रोऊँ तुझ में
चाहिए मुझको अब यार का दुख
चुप करा के मुझे रोने वाली
का निकल आया घरबार का दुख
चुन सही शख़्स को वरना होगा
उम्र भर एक इज़हार का दुख
रूठ जाना मनाना नहीं बस
ये नहीं होता तक़रार का दुख
तुमको हाँ हो ख़ुदा करना ऐसा
तुम नहीं जानो इनकार का दुख
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