गाँव में जाना जाना शोर शराबा है
शायद वो फ़िर घर से बाहर निकला है
हम क़ैदी भी रिहा किये जाएं इक दिन
हम लोगों को भी तो खुलकर जीना है
छोड़ रखा है सबकुछ दीवारों पे अब
इनको गिरना है या घर को रखना है
मुझसे इतनी मुहब्बत ठीक नहीं है अब
मुझको दो दिन जीना है फ़िर मरना है
आग लगा कर ये बोला शहज़ादी ने
पानी मत फेंको ये मुझको पीना है
ये आईना देख रहे हो ना तुम ये
आईना नहीं है ये मेरा कमरा है
सभी किताबें बिखेर डाली तुमने क्यों
कौन किताबों में अब ख़त को रखता है
मेरे बारे में इतना कहते हैं लोग
दूर रहो इससे ये ऐसा वैसा है
एक परीज़ादी से इश्क़ हुआ जब से
कदम कदम पे तब से डर है ख़तरा है
मौत सड़क पर राह देखती है मेरी
अबके गुजरा तो फ़िर मरना पक्का है
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