मुझको ही वक़्त जो देता था, था कभी
इश्क़ में मैं भी था मुब्तिला, था कभी
शेर तस्वीरों से कहता था, था कभी
एक चेहरे को शब भर लिखा, था कभी
उस तरफ़ क्यों नहीं जाते हो आजकल
वो तो घर जाने का रास्ता, था कभी
यार जुगनू, मोहब्बत रहें तितलियाँ
इश्क़ में एक ये क़ायदा, था कभी
इश्क़ नुक़सान है कहने वाले बता
इश्क़ नुक़सान या फ़ायदा, था कभी
आँख में रहने वाले बता सकते थे
आँख में घर किसी का बना था, कभी
देख के ख़ुद को रोता हूँ मैं आजकल
आइना मुझको अच्छा लगा, था कभी
क़ैस का सुनके ये सोचता हूँ मैं अब
हाल वैसा मेरा क्या हुआ, था कभी
पानी में तैरता है ये जो ख़ुद-ब-ख़ुद
पानी में ज़िस्म ये डूबता, था कभी
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