बाबा के जूते पाँव में आने लगे

  - Sachin Sharmaa

बाबा के जूते पाँव में आने लगे
बच्चे बड़े होकर के इतराने लगे

बेटी हुई तो शोक में डूबे हैं सब
बेटा हुआ तो नाचने - गाने लगे

माँ बाप के होने से रौनक घर में थी
रुख़्सत हुए तो घर भी वीराने लगे

जिस माँ ने रातों को सुनाई लोरी हों
उस माँ पे अब बच्चे भी चिल्लाने लगे

आनन्द की अनुभूति,धारण गर्म कर
इक अल्पविकसित जान गिरवाने लगे

बाग़ीचे में जिस गुल ने खिलना सीखा है
माली नही होने पे मुरझाने लगे

लालच ले आता खींचकर हर शख़्स को
देखो कबूतर छत मिरी आने लगे

  - Sachin Sharmaa

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