मयस्सर ही नहीं इंसान को ज़ीनत रिहाई की - Surendra Bhatia "Salil"

मयस्सर ही नहीं इंसान को ज़ीनत रिहाई की
मगर तुर्रे सियासत के कभी बातें ख़ुदाई की

तुम्हारी रूह तक गिरवी तुम्हारा जिस्म तक गहना
तो फिर कैसी बिनाहों पर ये तहरीरें वफ़ाई की

ये शोशेबाज़ियाँ बे-जाँ बुतों में जान भरते हो
मदारी हो नज़ूमी हो या है फ़ितरत जफ़ाई की

तबाही उनकी दीदा भर का खेला है रहो चौकस
वो देखा और कल अख़बार की सुर्ख़ी रिसाई की

- Surendra Bhatia "Salil"
0 Likes

More by Surendra Bhatia "Salil"

As you were reading Shayari by Surendra Bhatia "Salil"

Similar Writers

our suggestion based on Surendra Bhatia "Salil"

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari