सच है कि दर्द-ओ-ग़म का हिमाला ग़ज़ल में है - Shadab Shabbiri

सच है कि दर्द-ओ-ग़म का हिमाला ग़ज़ल में है
ये मोर्चा तो हमने सँभाला ग़ज़ल में है

उन्वान-ए-शायरी है मक़ाला ग़ज़ल में है
मेरी मोहब्बतों का हवाला ग़ज़ल में है

इक बह्र-ए-बेकराँ है हिमाला ग़ज़ल में है
सहरा मिरी ग़ज़ल में ग़ज़ाला ग़ज़ल में है

इक माह-रू की याद है शबनम भी फूल भी
ख़ुश्बू है चाँदनी है उजाला ग़ज़ल में है

राधा का बाँकपन है कन्हैया की बाँसुरी
मंदिर है राम जी का शिवाला ग़ज़ल में है

बेवा की हसरतें हैं यतीमों के ख़्वाब भी
'शादाब' मुफ़्लिसों का निवाला ग़ज़ल में है

- Shadab Shabbiri
0 Likes

More by Shadab Shabbiri

As you were reading Shayari by Shadab Shabbiri

Similar Writers

our suggestion based on Shadab Shabbiri

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari