रुख़ पर नक़ाब सर पे रिदा चाहता हूँ मैं
उसको लगे है उसका बुरा चाहता हूँ मैं
क्या पूछते हो मुझसे कि क्या चाहता हूँ मैं
मैं बा वफ़ा हूँ यार वफ़ा चाहता हूँ मैं
तुर्बत में अपनी करबोबला चाहता हूँ मैं
अपने कफ़न में ख़ाक-ए-शिफ़ा चाहता हूँ मैं
हलमिन की देके रन से ज़माने को इक सदा
लब्बैक की जहाँ से सदा चाहता हूँ मैं
मैं ख़ादिम-ए-रसूल ग़ुलामान-ए-पंजेतन
राह-ए-ख़ुदा में अपनी क़ज़ा चाहता हूँ मैं
अफ़सुर्दगी की ज़र्रा-नवाज़ी से थक चुका
कुछ शादमानी तेरा मज़ा चाहता हूँ मैं
गर्दन के तौक़ पैरों की ज़ंजीर से समझ
दुनिया में इंक़िलाब नया चाहता हूँ मैं
हामी हूँ इत्तिहाद का नफ़रत से बैर है
पैग़ाम-ए-अम्न बाद-ए-सबा चाहता हूँ मैं
दुनिया ख़िलाफ़ है तो रहे मुझको ग़म नहीं
बस ज़िंदगी में साथ तिरा चाहता हूँ मैं
तकलीफ़ मेरी समझो मुझे तुम दवा न दो
मैं हूँ मरीज़-ए-इश्क़ दुआ चाहता हूँ मैं
दश्त-ए-जुनूँ में ख़ाक उड़ाने के वास्ते
कू-ए-मता-ए-जाँ से विदा चाहता हूँ मैं
तुमसे ये जान माल नहीं चाहिए शजर
बस दोस्ती में अहद-ए-वफ़ा चाहता हूँ मैं
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