ये कहना लगता है मुझको बड़ा अजीब शजर
पलट के आएगा इक दिन मेरा हबीब शजर
तड़प के दर्द-ए-मोहब्बत से दम को तोड़ दिया
इलाज कर नहीं पाये मेरा तबीब शजर
कल आ के ख़्वाब में मुझसे कहा ये ग़ालिब ने
तुम एक रोज़ बनोगे बड़े अदीब शजर
गले लगा के मुझे अपने उसने मुझसे कहा
नहीं हैं तुम सा जहाँ में कोई नजीब शजर
ना कर ख़ुदारा तक़ाबुल तू यार दोनों का
कहाँ अमीर-ए-शहर और कहाँ गरीब शजर
किसी के साथ में होकर भी ख़ुश नहीं हूँ मैं
अजीब मोड़ पे ले आया है नसीब शजर
कोई तो हो जो मेरा हाल देखकर बोले
ये कैसा हाल बना रक्खा है अजीब शजर
जो शख़्स दूर है मीलों मेरी निगाहों से
वो शख़्स था कभी शह रग से भी क़रीब शजर
रक़ीब पहले नहीं हो तुम उसके यार सुनो
थे तुमसे पहले भी उसके कई रक़ीब शजर
मलाल होता है अपने वतन से दूर हो तुम
तुम्हारे जैसा न हो कोई बद नसीब शजर
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