जिसका ख़याल ज़ेहन पे छाया तमाम शब
मिलने को वो न ख़्वाब में आया तमाम शब
अपने लहू से सीना-ए-क़िर्तास पर तिरा
लिख लिख के नाम हमने मिटाया तमाम शब
चलता रहा दिमाग़ में यादों का सिलसिला
हमने सुकून-ए-दिल नहीं पाया तमाम शब
इक बे-वफ़ा की याद में अफ़सोस है हमें
सैलाब आँसुओं का बहाया तमाम शब
अहद-ए-वफ़ा को सोच के वादों को सोचकर
अपना मज़ाक हमने उड़ाया तमाम शब
दिल को सुकून जब न उदासी में आ सका
तन्हाई को गले से लगाया तमाम शब
जब कोई नग़्मा सुनने को बाक़ी नहीं रहा
फिर नग़्मा चाँद को ही सुनाया तमाम शब
तन्हा नहीं हूँ मैं तिरे जाने के बाद में
चलता है साथ में मिरे साया तमाम शब
ख़ुश हो के तुम तो बैठ के डोली में चल दिए
हिजरत का सोग हमने मनाया तमाम शब
लेने को मेरी ख़ैर ख़बर देखिए शजर
कोई न आया अपना पराया तमाम शब
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