क्या बताएँ आज क्या सरकार करना पड़ गया
वार पर दुश्मन के हम को वार करना पड़ गया
काम गुलशन में अजब ये यार करना पड़ गया
ख़ार को गुल और गुल को ख़ार करना पड़ गया
मुफ़्लिसी ने जब बसेरा घर के आँगन में किया
ख़ुद का सौदा बर सर-ए-बाज़ार करना पड़ गया
और क्या लिखता मैं ख़त में तुझको जान-ए-बे वफ़ा
दिल को तेरी याद में दो चार करना पड़ गया
दिल के आँगन में घुटन महसूस की एहसास ने
इसलिए दिल बे दर-ओ-दीवार करना पड़ गया
बर सर-ए-महफ़िल जो माँगा उसने उलफ़त का सबूत
ख़ून से तर फूल सा रुख़सार करना पड़ गया
मन बनाकर आए थे इज़हार करने का सनम
आप के इन्कार पर इन्कार करना पड़ गया
बर सर-ए-दश्त-ए-जुनूँ फ़रहाद था गिर्या-कुनाँ
ख़ुद को तेरे ग़म में यूँ ग़म-ख़्वार करना पड़ गया
ज़िंदगी ने मौत से बढ़कर अज़ीयत दी मुझे
सल्तनत का दूसरा हक़दार करना पड़ गया
बे-मुरव्वत की गली में घर मुरव्वत का शजर
ख़ुद बनाकर ख़ुद ही को मिस्मार करना पड़ गया
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