हैं रब से महव-ए-दुआ सब के सब जुदाई के बाद
हयात-ए-ख़िज़्र नहीं देना रब जुदाई के बाद
लहू टपकता है हर क़ल्ब के दरीचे से
बपा है क़ल्ब में महशर अजब जुदाई के बाद
तड़प रहे थे तड़पते हैं और तड़पेंगे
तेरी जुदाई से पहले और अब जुदाई के बाद
जुदाई हमसे तुम्हें चाहिए थी यार सो की
अब अश्क़बार हो तुम बे-सबब जुदाई के बाद
इधर मैं गिर्या-कुनाँ हूँ उधर वो गिर्या-कुनाँ
सुकून किसको मयस्सर है अब जुदाई के बाद
गले लगा के दो बोसा जबीन पर मेरी
तुम्हारे होंगे न ये ख़ुश्क-लब जुदाई के बाद
तेरी जुदाई ने दीवाना कर के छोड़ दिया
किसी को कर न सका मुंतख़ब जुदाई के बाद
जो मुस्कुराता था हर दम जुदाई से पहले
वो रोया करता है अब रोज़-ओ-शब जुदाई के बाद
उदास रह के गुज़ारी है मयक़दे में हयात
कभी गया नहीं बज़्म-ए-तरब जुदाई के बाद
सर उसने पीट लिया सुर्ख़ कर लिए रूख़सार
नज़र पड़ा मैं उसे यार जब जुदाई के बाद
लबों पे अहल-ए-नज़र के है सुब्ह-ओ-शाम यही
शजर शजर नहीं लगता ग़ज़ब जुदाई के बाद
Read Full