वफ़ा ख़ुलूस मोहब्बत की इब्तिदा हूँ मैं
बताओ किसने कहा तुमसे बे वफ़ा हूँ मैं
तुम्हारे नक़्श-ए-पा हर एक दिल के कूचे में
निगाह-ए-शौक़ से हर वक़्त ढ़ूँढ़ता हूँ मैं
मेरे लबों पे तबस्सुम कहाँ से आएगा
ग़म-ए-फ़िराक़ में हर लम्हा ग़म-ज़दा हूँ मैं
किसी ने बर-सर-ए-मक़तल तरस नहीं खाया
वो कह रहा था कि बे जुर्म-ओ-बे-ख़ता हूँ मैं
मेरा मिज़ाज निराला है अस्र-ए-हाज़िर में
सितम को सब्र के ख़ंजर से काटता हूँ मैं
हाँ हक़ के साथ सदा मिस्ल-ए-मीसम-ए-तम्मार
खड़ा रहूँगा खड़ा था खड़ा हुआ हूँ मैं
किया है जब से शुरू मैंने हक़ को हक़ कहना
ज़माने वालों की आँखों में चुभ रहा हूँ मैं
मुख़ालिफ़त मेरी करने लगे हैं अहल-ए-जहाँ
वो यानी रस्ते पे हक़ की निकल पड़ा हूँ मैं
शजर ये हज़रत-ए-ज़ैनब के लब पे नौहा था
है बाबा शाम का बाज़ार बे रिदा हूँ मैं
निशान-ए-पा तेरा देता था चीख़कर ये सदा
शजर तू चूम ले उसका निशान-ए-पा हूँ मैं
ज़माने वाले ज़माने में मुझको समझेंगे
क़सम ख़ुदा की शजर ऐसा फ़लसफ़ा हूँ मैं
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