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बैठे बैठे काट रहा हूँ उन बेलों को आरी से - Shivam chaubey

बैठे बैठे काट रहा हूँ उन बेलों को आरी से
जिनको तुमने बांध दिया था दिल की चार-दिवारी से

शायद ये ही सोच के बर्टी सुब्ह से गुमसुम बैठा है
शायद चन्दर ने फिर कोई फूल चुराया क्यारी से

ना-उम्मीदी रहज़न बनकर जब से साथ हुई मेरे
उम्मीदों के सारे बक्से लुट गए बारी बारी से

पानी की तस्वीर दिखाकर किसकी प्यास बुझी आख़िर
फिर भी मेरा दिल अबतक तो बहला है ग़म-ख़्वारी से

अपने ही माथे पर अपने हाथों से थपकी देकर
बेदारी से लड़ता हूँ या अपनी दिल-आज़ारी से

पहली बारिश पहली चाहत पहला बोसा पहला दुख
ये चीजें कब ग़ायब होंगी जिस्म की इस अलमारी से

- Shivam chaubey

Tasweer Shayari

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