मैं उसको यूँ ही रोता छोड़ आया
मैं उसको कितना तन्हा छोड़ आया
उसे मैं अपनी दुनिया मानता था
तो फिर क्यों अपनी दुनिया छोड़ आया
मुकम्मल होना था जिसको मेरे साथ
उसी को मैं अधूरा छोड़ आया
मोहब्बत का समंदर था दिल उसका
बनाकर दिल को सहरा छोड़ आया
मेरा दिल पूछता है मुझसे 'युवराज'
वो ख़ुद ही छुट गई या छोड़ आया
As you were reading Shayari by Yuvraj Singh Faujdar
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