ग़ज़ल है क़ाफ़ियों से क़ाफ़िए हैं जान ग़ज़लों की
बिना इन के गली हो जाएगी वीरान ग़ज़लों की
कहीं मतला', कहीं मक़्ता', कहीं आता तख़ल्लुस है
बढ़ाते हैं ये सब बज़्म-ए-अदब में शान ग़ज़लों की
कई सिन्फ़ें हैं जैसे गीत, दोहे, सोरठा, नज़्में
अलग ही है मगर साहित्य में पहचान ग़ज़लों की
रदीफ़ों को मनाओ गर क़वाफ़ी रूठ जाते हैं
बड़ी मुश्किल से बनती है सुरीली तान ग़ज़लों की
ख़ुशी का,दर्द का या हो कोई मौज़ूअ दुनिया का
सहारा है बनी सबके लिए दूकान ग़ज़लों की
बहुत से इंक़िलाबों में इन्हों ने जान फूँकी है
तुम्हे क्या क्या बताएँ ख़ूबियाँ बे-जान ग़ज़लों की
बड़ी मुश्किल से होती है मुकम्मल इक ग़ज़ल "यावर"
मियाँ, है राह इतनी भी नहीं आसान ग़ज़लों की
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