बेहद सर-बस्ता है मुझ ग़ाफ़िल का दुःख,

  - Abhas Nalwaya Darpan

बेहद सर-बस्ता है मुझ ग़ाफ़िल का दुःख,
लोग नहीं समझेंगे मेरे दिल का दुःख

तुमने बस रस्तों की मुश्किल देखी है,
हम लोगों ने देखा है मंज़िल का दुःख

खा जाता है लुत्फ़-ऐ-अहद-ऐ-हाज़िर को
माज़ी का हो या हो मुस्तक़बिल का दुःख

दरियाओं को सोचता है , सर नोचता है
सोचो कैसा होता है साहिल का दुःख

जब मुझसे कुछ अरमानों का क़त्ल हुआ,
तब जाकर जानाँ मैंने क़ातिल का दुःख

मैं तो बस कुछ शेर सुनाने आया था,
अब आँखों में है अहल-ऐ-महफ़िल का दुःख

'दर्पन' दुःख में भी कोई हंसता है क्या?
तुम पर रक़्सीदा है किस जाहिल का दुःख

  - Abhas Nalwaya Darpan

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