अगर तुमसे मोहब्बत हम नहीं करते तो क्या होता
रपट थाने में लिखवाते शुरू से फ़ैसला होता
हमें इस बार बाहों में अगर ख़ुद ही बुला लेते
न ऐसी बात ही होती न ये मसला खड़ा होता
मनाओ ख़ैर क्या करना नफ़ा-नुक़सान की बातें
अगर दिल हम नहीं लेते कबाड़े में पड़ा होता
अगर पहचान लेते दूर से ही देख कर हमको
तमाशा भी नहीं होता न ये जमघट लगा होता
अगर मेरा लबादा ज़ेब-ए-तन करके नहीं आता
न फिर इल्ज़ाम आता कोई ज़िंदाँ से जुदा होता
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