कुछ देर बस खड़े रहो दिलबर न देखियो - Prashant Kumar

कुछ देर बस खड़े रहो दिलबर न देखियो
कपड़े बदल रही अभी मुड़कर न देखियो

दूँगी लिबास उतार मगर शर्त एक है
कुछ भी हो जाए घुटनों से ऊपर न देखियो

है घास-फूस का वही टूटा सा झोपड़ा
दहलीज़ पर कभी कि तुम आकर न देखियो

बेटे निकाह जल्द कराना पड़ेगा फिर
नक़्श-ए-क़दम पे क़ैस के चलकर न देखियो

लफ़ड़ा बहुत हुआ है तुम्हारी वजह से आज
तुम बात मान लो मिरी छत पर न देखियो

छोटी सी ज़िंदगी की बड़ी दास्तान है
उम्रें गुज़ार दोगे सुनाकर न देखियो

- Prashant Kumar
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