ज़माने से दिल में दबी फिर रही हैं - Prashant Kumar

ज़माने से दिल में दबी फिर रही हैं
सभी ख़्वाहिशें टूटती फिर रही हैं

जिन आँखों की मैं रौशनी बन गया हूँ
न जाने किसे देखती फिर रही हैं

बलाएँ अगर जानती हैं पता तो
ज़माने से क्यूँ बूझती फिर रही हैं

ग़लत राह पर शौक़ में जो चले हैं
उन्हें मंज़िलें ढूँढती फिर रही हैं

अरे यार गुज़रा हुआ हादिसा हूँ
मगर लड़कियाँ सोचती फिर रही हैं

इधर से उधर बेटियाँ एक माँ को
कई साल से ढूँढती फिर रही हैं

किसू इब्न के ही लिए रोज़ माएँ
इधर से उधर माँगती फिर रही हैं

- Prashant Kumar
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