दिल को कब तक यूँ तेरी याद में तड़पाऊँ मैं
है मुझे अब ख़ुशी क्या जो कभी मुस्काऊँ मैं
यूँ ही तस्वीरों में कब तक मैं निहारूँ तुझको
आँखों को कितना तेरे वास्ते तरसाऊँ मैं
है ये बेहतर कि मैं दिल फिर से लगा लूँ कहीं पे
भूलने से तुझे अब किस लिए घबराऊँ मैं
कैसे भूलूँगा तुझे मैं ये नहीं फ़िक्र मुझे
है मुझे डर कि कहीं टूट न फिर जाऊँ मैं
ख़ुद की भी ख़ूबियों से है बड़ी नफ़रत मुझे अब
है बहुत ख़ूब वो कैसे उसे अपनाऊँ मैं
एक ही बे-वफ़ा काफ़ी है कहानी के लिए
लगा कर दिल कहीं क्यूँ बे-वफ़ा कहलाऊँ मैं
स्वाद जो चख लिया इक बार मोहब्बत का जब
फिर से क्यूँ एक दफ़ा ज़हर वही खाऊँ मैं
जान-ए-जाँ बाद तेरे मर गया आशिक़ तेरा
हूँ मैं 'रेहान' ये कैसे तुझे समझाऊँ मैं
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