ख़ामोशी से उसकी बस झगड़ा हुआ
हर अँधेरा रूह का उजला हुआ
धूप ने साये खरोंचे इस क़दर
ज़िन्दगी का रंग चितकबरा हुआ
यार ये तुकबंदियाँ क्यों कर भला
शायरी करते थे उसका क्या हुआ
बदहवासी दूर तक फैली हुई
मैं कि बच्चा भीड़ में खोया हुआ
वो यक़ीनन आ गए हैं लौट कर
वर्ना कैसे शहर सतरंगा हुआ
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