0

कितना हसीन ख़्वाब था आंखों में रह गया - Ankit Maurya

कितना हसीन ख़्वाब था आंखों में रह गया
वो चेहरा माहताब था आंखों में रह गया

मैं जैसे कोई ख़ार था चुभने लगा उसे
वो तो कोई गुलाब था आंखों में रह गया

मैंने तो तेरी मर्ज़ी से बोला था झूठ पर
जो अस्ल में जवाब था आंखों में रह गया

लौटा दिए हैं उसने मेरे ख़त वग़ैरा सब
बाक़ी का जो हिसाब था आंखों में रह गया

ऐसा नहीं मेरा कभी कोई नहीं था पर
मैं कह रहा जनाब था, आंखों में रह गया

अच्छा था जो भी फ़िल्म में यूं ही गुज़र गया
वो सीन जो ख़राब था आंखों में रह गया

- Ankit Maurya

More by Ankit Maurya

As you were reading Shayari by Ankit Maurya

Similar Writers

our suggestion based on Ankit Maurya

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari