बयाँ होती नहीं तेरी नज़ाकत चंद लफ़्ज़ों में

  - arjun chamoli

बयाँ होती नहीं तेरी नज़ाकत चंद लफ़्ज़ों में
बयाँ होती तो हो जाती क़ियामत चंद लफ़्ज़ों में

मिरा हर रास्ता तेरी ही गलियों से गुज़रता है
दरीचा बंद था सुन ले शिकायत चंद लफ़्ज़ों में

किया सज्दा बड़ा तेरा तुझे पाने की कोशिश में
कि पूरी हो नहीं सकती इबादत चंद लफ़्ज़ों में

किसी शायर की ग़ज़लों में तिरा ये नाम गर आया
मैं उस शायर की कर दूँगा ज़लालत चंद लफ़्ज़ों में

सुना है शहर भर तेरी ही चर्चा है दिवानों में
मिटा दूँगा या उनको दे हिदायत चंद लफ़्ज़ों में

ये दुनिया गर तुझे देखे मुझे तकलीफ़ होती है
जलन के नाम पर लिख दी इबारत चंद लफ़्ज़ों में

शरीफ़ों ने भी तेरा नाम लिख डाला किताबों में
मैं भर दूँ शहर की हर इक इमारत चंद लफ़्ज़ों में

तिरा बस नाम लेते ही फ़ज़ाओं में घुली ख़ुशबू
फ़ज़ाएँ भी करे तेरी वकालत चंद लफ़्ज़ों में

क़सम तुझको मिरी ज़ीनत मिरी हर साँस तेरी है
मिरे मरने से पहले सुन मोहब्बत चंद लफ़्ज़ों में

  - arjun chamoli

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