ख़्वाबों के मैं घर जाऊँगा इस से ज़्यादा क्या होगा
तन्हाई में डर जाऊँगा इस से ज़्यादा क्या होगा
झीलें दरिया या सागर पड़ने लग जाएँगे कम जब
आँख में तेरी उतर जाऊँगा इससे ज़्यादा क्या होगा
मुद्दत से इक चाँद के ख़ातिर जगता हूँ मैं रातों में
तारों-सा मैं बिखर जाऊँगा इससे ज़्यादा क्या होगा
तेरी यादों के जंगल में रूह भटकती रहती है
सर्वत-सा कुछ कर जाऊँगा इस से ज़्यादा क्या होगा
दिल में तिरी तस्वीर लिए अब पागल-सा मैं फिरता हूँ
इश्क़ में तेरे मर जाऊँगा इससे ज़्यादा क्या होगा
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