जले ये दिल कभी तन्हा न ऐसी तुम सज़ा देना
अगर है इश्क़ तुमको तो निडर हो के बता देना
तुझे ख़त के लिफ़ाफ़े में कलेजा साथ भेजा है
लगे डर जब अँधेरे में कलेजे को जला देना
हमें वो याद है गुज़रे हुए बचपन के दिन सारे
कभी नज़रों का मिलना और दिल में मुस्कुरा देना
उसी की याद में बुनकर ग़ज़ल का हूँ बना फिरता
मिले जब वो ग़ज़ल मेरी उसे पढ़ कर सुना देना
उसे हरगिज़ नहीं बख़्शें नहीं है क़ाबिल-ए-बख़्शिश
किसी मस्जिद का ढाँचा या कोई मंदिर गिरा देना
हमारी माँ हमें हर सुब्ह ये तालीम देती है
वतन पर आँच आए गर जिगर का ख़ूँ बहा देना
Read Full