मत पूछ भला इस राह-ए-वफ़ा क्या क्या न हुआ मंज़ूर-ए-नज़र
हर एक सितम तोहफ़ा था मुझे हर एक गिला मंज़ूर-ए-नज़र
कल बज़्म-ए-सनम में जो भी मिला हर शख़्स मिला उस पर ही फ़िदा
बस हो न सका मुझ पर ही करम बस मैं न हुआ मंज़ूर-ए-नज़र
ऐ जान-ए-जिगर आशिक़ से तेरे लगता है मुझे रब रूठ गया
आती न दवा अब काम कोई होती न दुआ मंज़ूर-ए-नज़र
समझे न सगा दे लाख दग़ा दिल तोड़ दे या दे छोड़ मुझे
वो जान करे सौ बार ख़ता हर एक ख़ता मंज़ूर-ए-नज़र
ये इश्क़ नहीं इक खेल है बस शह-मात पे तू अफ़सोस न कर
जो कुछ भी गया जाने दे उसे कर जो भी बचा मंज़ूर-ए-नज़र
सर दार पे रख या काट ज़बाँ हर हाल में सच बोलूँगा यहाँ
हर हुक्म है सर आँखों पे तेरा हर एक सज़ा मंज़ूर-ए-नज़र
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