कम तो नहीं ग़म ज़िंदगी
है इश्क़ भी याँ दिल-लगी
उस की कहीं है नग़्मगी
तड़पाती है ये तिश्नगी
मेरा ख़ुदा महबूब है
जाती नहीं अब बंदगी
मुझ को यक़ीं अब भी नहीं
वो है लिखा ता-ज़िंदगी
आशिक़ जो दर दर था फिरा
पूछा तो पाया रफ़्तगी
उस से मुहब्बत कम नहीं
फिर भी मुहब्बत रेज़गी
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