फ़िराक़-ए-यार के मारे नहीं हैं हम आसिफ़

  - Abdulla Asif

फ़िराक़-ए-यार के मारे नहीं हैं हम आसिफ़
विसाल-ए-यार से घुटता है अपना दम आसिफ़

हरीफ़-ए-जाँ से मरासिम तो बाहमी हैं मगर
अज़ीज़-ए-जाँ से तअल्लुक़ नहीं बहम आसिफ़

तबीब कोशिश-ए-दरमाँ में मर गए सारे
मगर दिलों की जराहत हुई न कम आसिफ़

कोई है महव-ए-फ़ुग़ाँ तो कोई है नालागर
यहाँ पे किसको सुनाएँ हम अपना ग़म आसिफ़

लिहाज़ कीजिए उनका लिहाज़ लाज़िम है
ज़माने पर ये समझिए कि हैं करम आसिफ़

हसीं बदन की रसाई से तंग लोगों में
फ़िराक़-ए-यार का थामे हुए अलम आसिफ़

जबीं झुका के सर-ए-जाम बादा-ख़्वारों ने
बना के छोड़ा है मयखा़ने को हरम आसिफ़

सितमगरों की ये बस्ती नमक चुरा लेगी
किसी के आगे मत आना ब-चश्म-ए-नम आसिफ़

हवा-ए-तुंद से कह दो की लौट जाए अब
खड़े हुए हैं चराग़ों के साथ हम आसिफ़

पयम्बरों से कोई उनकी लाठियाँ छीने
रखे हुए हैं मेरे दिल में कुछ सनम आसिफ़

शब-ए-फ़िराक़ को दीं गालियाँ बहुत उसने
सुना रही है मुझे शाम अपना ग़म आसिफ़

ग़रीबी ऐसी कि बस वक़्त मेरी जेब में है
मैं फिर भी तुझपे लुटाऊँगा ये रक़म आसिफ़

मसर्ररतों की है महफ़िल ब-जुज़ लिहाज़ नहीं
उदासियों का हैं थामे हुए अलम आसिफ़

  - Abdulla Asif

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