ऐ हमसफ़र बता यहाँ क्या क्या फ़रेब है
मंज़िल फ़रेब है या ये रस्ता फ़रेब है
है बंदगी से मेरा शग़फ़ ख़ुल्द में मक़ाम
यानी मेरी जबीन का झुकना फ़रेब है
मैं एक सा कहीं नहीं यानी कहीं नहीं
ये आइना फ़रेब है साया फ़रेब है
अब तीन साल बाद के रिश्ते को तोड़कर
जाते हुए तेरा मुझे तकना फ़रेब है
ख़ामोश है तू फिर भी है साबित तेरा वुजूद
चिल्लाऊँ फिर भी तो मेरा होना फ़रेब है
इस शहर की शराब का प्याला चखे बग़ैर
उस शहर की शराब को पीना फ़रेब है
सूरत ही देखकर कभी सीरत न जानिए
सहरा के बीचोंबीच में दरिया फ़रेब है
शबनम ग़िज़ा चुराती है तितली की फूल से
गुलशन पे बाग़बाँ तेरा पहरा फ़रेब है
कूज़ा-गरी की ख़ैर मगर टूटने के बाद
फिर किरचियों का चाक पे आना फ़रेब है
धोखे से मुझको धोखा दिया जाने लग गया
धोखे से जो हुआ मुझे धोखा फ़रेब है
ऊँचे शजर के नीचे समर टूटने की आस
इस आस का ज़मीन पे गिरना फ़रेब है
मुझको उदास देख के कहता है ख़ुश-मिज़ाज
तेरा ख़ुशी पे शेर ही कहना फ़रेब है
सादिक़ लिखा गया है तेरे हर फ़रेब को
सादिक फ़रेब को तेरे लिखना फ़रेब है
साक़ी तू जिस अदा से मुझे दे रहा है मय
पीना हलाल है मेरी तौबा फ़रेब है
सच सुन न पाऊँगा कि भरम टूट जाएगा
मेरे लिए हक़ीक़तें सुनना फ़रेब है
सच भीड़ में है फिर भी है दहशत-ज़दा मगर
बे-ख़ौफ़ उसके सामने तन्हा फ़रेब है
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