फूल जिस में डाले थे छुप कर वो बस्ता याद है
रख लिया था सर कभी जिस पर वो काँधा याद है
ज़िन्दगी जिस पर लुटा दी वो हसीना याद है
देख मुझको दूर उसका चिड़चिड़ाना याद है
उस इमारत में कहीं पर सीढ़ियों के सामने
वो जहाँ तन्हा मिला मुझसे वो कमरा याद है
अब नहीं है याद उसके काँधे का वो तिल हमें
नाम लेकिन फिर भी आतिफ़ को शिखा का याद है
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