जी रहे अब तक तुम्हारी याद दिल में थाम के
मसअले अपने रहे क्या हैं सिवा इस काम के
बे-वफ़ाई पर हमें कुछ बोलने का हक़ नहीं
प्यार हमने भी नकारे हैं कई गुमनाम के
सोचते थे इंतज़ारी में कटेगी उम्र सब
आ गई हो तो सताते हैं हकीक़त काम के
उल्फ़ते - नौ के फ़सानों से मुतासिर हम नहीं
जानते हैं राज़ हम आग़ाज़ और अंजाम के
ग़मज़दा तो हूँ बिछड़ने पर मगर ये है सुकूँ
कम से कम अब हैं मयस्सर चंद पल आराम के
इस क़दर भी क्या मोहब्बत है हमें तुझसे सखा
मुद्दतें गुज़रीं मगर ग़म साथ तेरे नाम के
इन हिजाबों की वजह से हुस्न का हम जायज़ा
ले रहे आँखों पे उसके आँख दो पल थाम के
मर गए लेकिन अभी भी आरज़ू है वस्ल की
कब्र से मेरे उठें नगमें तुम्हारे नाम के
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