किया मुझ पे है ये एहसान मौला - DILBAR

किया मुझ पे है ये एहसान मौला
दिया जो ये इलाही ज्ञान मौला

था जिस भी काम से आया जहाँ में
बशर उस काम से अनजान मौला

जगाकर इश्क़ आदम के भी मन में
बनाता है उसे इंसान मौला

तेरी हर रम्ज़ को मैं मान पाऊँ
अता कर मुझको वो वरदान मौला

ज़रा सी भी न जिसमें कामना हो
करूँ सेवा लगा जी जान मौला

भँवर में भी उसे मिल जाए मंज़िल
तू जिस कश्ती का हो कप्तान मौला

हक़ीक़त छोड़ मुझसे ख़्वाब में भी
किसी का भी न हो अपमान मौला

तेरे रहम-ओ-करम से आज 'दिलबर'
मिली हर क़ैद से गुफ़रान मौला

- DILBAR
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