पड़ी जब से मुर्शद की मुझ पर नज़र है

  - DILBAR

पड़ी जब से मुर्शद की मुझ पर नज़र है
सहज हो गया ज़िन्दगी का सफ़र है

खंडर वो भी तीरथ-सा पूजा गया फिर
जहाँ से भी गुज़रा ये कामिल अगर है

  - DILBAR

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