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पिता के माथे आया बस शिकन का दुख - Harsh saxena

पिता के माथे आया बस शिकन का दुख
किसी मुफ़्लिस से पूछो पैरहन का दुख

सभी ने राम का ही कष्ट देखा बस
था दशरथ की भी आँखों में वचन का दुख

फ़क़त दिलबर के जिस्मों तक ही सीमित है
न जाने क्यों सुख़न-वर के सुख़न का दुख

मोहब्बत में कलाई काटने वाले
समझते ही नहीं अक्सर बहन का दुख

बिना मर्ज़ी किसी से ब्याह दी जाए
वही लड़की बताएगी छुअन का दुख

गले भी लग न पाए वस्ल में उसके
भला अब और क्या होगा बदन का दुख

यहाँ हर शख़्स ख़ूँ का प्यासा लगता है
यक़ीनन मज़हबी घिन है वतन का दुख

मुझे फुटपाथ का मंज़र बताता है
कि मज़दूरों ने चक्खा है थकन का दुख

- Harsh saxena

Mazdoor Shayari

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