दोस्ती में कुछ छुपाया ही नहीं

  - Hrishita Singh

दोस्ती में कुछ छुपाया ही नहीं
मैंने बस इक सच बताया ही नहीं

मैं उसे दे दूँ विरासत उम्र की
मेरे हिस्से में जो आया ही नहीं

तोहमतें दिल तोड़ने के भी लगे
दिल कभी जिनसे लगाया ही नहीं

उसके ही क़दमों में मैं था गिर पड़ा
वो गले जिसने लगाया ही नहीं

मुद्दतों जिसके रहे है मुंतज़िर ,
लौट कर वो शख़्स आया ही नहीं

हौसलों पर था यक़ीं इतना मुझे
मैंने क़िस्मत आज़माया ही नहीं

चाहते थे बेवफ़ाई सीखना
पर उसे मुर्शिद बनाया ही नहीं

'मोह' ने मेरे उसे रक्खा है बाँध
हाथ फिर मुझसे छुड़ाया ही नहीं

  - Hrishita Singh

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