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जोग बिजोग की बातें झूठी सब जी का बहलाना हो - Ibn E Insha

जोग बिजोग की बातें झूठी सब जी का बहलाना हो
फिर भी हम से जाते जाते एक ग़ज़ल सुन जाना हो

सारी दुनिया अक्ल की बैरी कौन यहां पर सयाना हो
नाहक़ नाम धरें सब हम को दीवाना दीवाना हो

तुम ने तो इक रीत बना ली सुन लेना शर्माना हो
सब का एक न एक ठिकाना अपना कौन ठिकाना हो

नगरी नगरी लाखों द्वारे हर द्वारे पर लाख सुखी
लेकिन जब हम भूल चुके हैं दामन का फैलाना हो

तेरे ये क्या जी में आई खींच लिये शर्मा कर होंठ
हम को ज़हर पिलाने वाली अमृत भी पिलवाना हो

हम भी झूठे तुम भी झूठे एक इसी का सच्चा नाम
जिस से दीपक जलना सीखा परवाना मर जाना हो

सीधे मन को आन दबोचे मीठी बातें सुन्दर लोग
'मीर', 'नज़ीर', 'कबीर', और 'इन्शा' सब का एक घराना हो

- Ibn E Insha

Duniya Shayari

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