घात वालों के लिए बे-चेहरगी आसान है क्या
है सवाल उनका कि ये पोशीदगी आसान है क्या
निस्बत-ए-ईमाँ के जानिब छोड़ दी मैंने रक़ाबत
हार जाना ख़ुद से ख़ुद करके ठगी आसान है क्या
हासिल-ए-लुत्फ़-ए-ज़ियाफ़त के लिए इश्क़-ओ-मुहब्बत
बे-वफ़ाओं के लिए शर्मिंदगी आसान है क्या
इस क़दर पाबन्द 'माही' का जुनूँ है इश्क़ है तो
दस्त-ए-वहशत में कहो शाइस्तगी आसान है क्या
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