कुछ यूँ घुमा कर मुँह गुज़र जाना पसंद आया उसे
यारों मुझे ताउम्र तड़पाना पसंद आया उसे
मेरी ही सुर की साधना का रूप अनगढ़ छोड़ कर
कोई नया सा गीत मनमाना पसंद आया उसे
जो थे गुज़ारे साथ में वो उम्र और लम्हात छोड़
इक अजनबी ही यार अनजाना पसंद आया उसे
आई ख़बर नाज़िल हुआ इक हादसा कल शहर में
जिसमें मिरा बेमौत मर जाना पसंद आया उसे
उसकी निगाह-ए-नाज़ के आशिक़ तो लाखों थे मगर
मुझ एक ही को यार समझाना पसंद आया उसे
था प्यार का इक़रार इक नायाब तोहफ़ा पर मगर
बस एक टूटे दिल का नज़राना पसंद आया उसे
बादा-कशी के बाद पूरी बज़्म के बहके क़दम
पर ख़ास 'माही' का बहक जाना पसंद आया उसे
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