जिस शाम उसको ट्रेन में बैठा के आया था
मैं उसको उसके प्यार से मिलवा के आया था
उसकी बसी बसाई मैं दुनिया उजाड़ कर
जो खा नहीं सका उसे फैला के आया था
मेरे नसीब में कहीं बैठा तुम्हारा दुख
लगता था जैसे माँ की क़सम खा के आया था
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